समाज सुधारक संत एवं कवि, मारवाड़ के कबीर संत शिरोमणि श्री लिखमीदास जी महाराज

राजस्थान प्राचीन काल से ही संतो, भक्त कवियों, महापुरूषों एवं लोक देवताओं की जन्म भूमि एवं कर्मभूमि रही है। जिसमें नागौर के लोक देवताओं, संत कवियों एवं महापुरूषों का योगदान अग्रणी रहा है। नागौर की पावन धरा, भक्तमति मीरां बाई, पर्यावरण रक्षक संत गुरू जम्भेश्वर जी, लोक देवता पीपाजी, वीर तेजाजी जैसे अनेक लोक रक्षक संतों एवं कवियों की जन्य भूमि है। ऐसे ही लोक संतों में कबीर के समान समाज सुधारक एवं भक्त कवि के रूप में संत शिरोमणी लिखमीदास जी का स्थान अग्रणी हैं।

जीवन परिचय :-

संत लिखमीदास जी का जन्म आषाढ़ शुल्क पूर्णिमा (गुरू पूर्णिमा) को विक्रम संवत 1807 (18 जुलाई 1750 ई.) में हुआ। प्रेरणा पुरूष का अवतरण रामूदस सोलंकी (माली) बड़की बस्ती, चेनार (नागौर) निवासी के घर हुआ। इनकी माता का नाम नत्थी देवी था। ये बाल्यकाल से ही ईश आराधना में निमग्न रहे। है। इनके इनके गुरू खिंयाराम जी ने इनकी भगवद् विषयक भक्ति को और पुष्ट किया। ये बाबा रामदेव के परम अनुयायी थे। इनका विवाह परसाराम टाक की सुपुत्री चचैनी बाई के साथ हुआ। 25 वर्ष की अल्पायु में ही इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ने के बावजूद इनकी ईश भक्ति में कोई कमी नहीं आई, बल्कि इन्होंने अपने लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान को भक्ति काव्य के माध्यम से प्रस्फुटित्त किया। इन्होंने अमरपुरा (नागौर) को अपनी कर्म भूमि बनाया। समाज को निर्गुण भक्ति एवं सामाजिक समरसता का सन्देश देते हुए विक्रम संवत 1887 (सन 1830 ई.) में अपनी देह परमात्मा के चरणों में समर्पित करते हुए नागौर के अमरपुरा गाँव में जीवित समाधि ली।

समाज सुधारक संत एवं कवि के रूप में:-

संत लिखमीदास एक सामान्य किसान (माली) होने के साथ-साथ अपनी भक्ति एवं काव्य से समाज सुधार के कार्यों में अग्रणी रहे। ये लोक देवता बाबा रामदेव की आराधना में भक्ति एवं काव्य पाठ करते थे। इनका अधिकांश काव्य समाज में व्याप्त अशिक्षा, बाध्य आडम्बरों, रूढ़िवादी परम्पराओं एवं अंधविश्वास जैसी अनेक सामाजिक बुराईयों पर गहरी चोट करता है। इन्होंने अपने काव्य में कबीर के समान रहस्यवाद, निर्गुण भक्ति, गुरू की महिमा एवं प्रेम की महत्ता पर बल दिया। इन्होंने वाणी एवं भजनों के माध्यम से सामाजिक समरसता एवं अन्तः करण की शुद्धता पर जोर दिया।

भक्ति काव्य की भाषा :-

संत लिखमीदास जी ने अपने भक्ति काव्य में वाणी, भजनों एवं दोहों के अन्तर्गत जन मानस की सरल, सधुक्कड़ी एवं राजस्थान (मारवाड़ी) भाषा को अपनाया। जिसके कारण जन सामान्य पर इनकी भक्ति एवं काव्य का गहरा प्रभाव पड़ा और इनके अनुयायियों की संख्या समाज में बढ़ती
गई। काव्य में मारवाड़ी भाषा के साथ पंजाबी एवं अनेक देशज शब्दों का प्रयोग किया। रस एवं अलंकार प्रयोग के बावजूद इनकी वाणी की भाषा आसानी से समझी जा सकती है।

चमत्कार (परचे बेना)

संत लिखमीदास बाबा रामदेव के परम भक्त अनुयायी थे जिसके कारण इनकी भक्ति में अलौकिक शक्ति निहित थी। आपने अनुयायियों को समय-समय पर चमत्कार (परचे) द्वारा साक्षात करवाया। इनके परचों की कथाएँ एवं घटनाएँ जन मानस में आज भी सत्यपुष्ट एवं प्रचलित है। इनके द्वारा दिये गये कुछपरचे (चमत्कार) निम्न है:-

* जोधपुर के राजा भीम सिंह की ऑडीट ठीक करना।

* झुंझाला में गुसाँईजी के मंदिर का ताला बिना चाबी के ही अपनी वाणी से खोल देना।

खेत में पाणत एवं सतसंग में भजन हेतु दोनों जगह साक्षात उपस्थित रहना।

अहमदाबाद में मुल्ले को दर्शन देनां

जैसलमेर में मृत बच्चे को जीवित करना।

इनके परचे अथवा चमत्कार न सिर्फ मारवाड़ बल्कि समूचे भारत में विख्यात है। जिनका साक्षात अनुभव लोगों ने किया है। इन्होंने सामाजिक समरसता के सन्देश देते हुए, मेघवाल, ब्राह्मण, साद, कुम्हार सहित अनेक जातियों में भेदभाव कम कर साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित किया।

समाज के प्रेरणा स्रोत :-

संत लिखमीदास जी कवि होने के साथ-साथ संत एवं महान समाज सुधारक थे। इन्होने गृहस्थ जीवन के साथ भक्ति एवं काव्य द्वारा समाज में व्याप्त अनेक बुराईयों को जड़ से मिटाया। ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद ये कबीरदास जी की तरह अपनी वाणी से समाज के प्रेरणा स्रोत बनकर उभरे। इनकी वाणियाँ आज भी भजनों एवं दोहों के रूप में प्रचलित है एवं भक्तों द्वारा सत्संग में भक्ति भाव से गायी जाती है।

संत लिखमीदास जी की भक्ति एवं काव्य से प्रेरित होकर माली समाज द्वारा इनकी कर्मस्थली अमरपुरा (नागौर) में इनके प्रति असीम श्रद्धा प्रकट करते हुए एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया गया है ताकि इनकी भक्ति एवं वाणी के प्रसाद तथा दर्शन से सभी समाज के लोग लाभान्वित हो सके एवं इनकी प्रेरणा से समाज-सुधार के कार्य आगे भी अनवरत चल सके। इस भव्य मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 05 दिसम्बर 2016 को प्रस्तावित है जिसमें समूचे राजस्थान के माली समाज के सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में सामाजिक सौहार्द एवं समरसता के बीच मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी ताकि संत लिखमीदास जी की प्रेरणा समाज को अनवरत प्रेरित करती रहे।